Description:आर्य कौन थे? कब थे? कहाँ बसते थे? क्या करते थे? कैसे रहते थे?...इन अनगिनत प्रश्नों के उत्तर की प्रामाणिक कथा है—‘मैं आर्यपुत्र हूँ’।रामायण श्रीराम की जीवनकथा है और यह अब तक की आदर्श जीवनकथा होनी चाहिए। ठीक इसी तरह महाभारत समाज की कथा है और यह अब तक की महानतम सामाजिक-कथा होनी चाहिए, अपने आप में संपूर्ण। इन दोनों कथाओं से आर्यों के चरित्र का अनुमान तो लगाया जा सकता है, मगर उनका समग्र रूप नहीं दिख पाता, क्योंकि श्रीराम व श्रीकृष्ण अवतारी पुरुष थे, जबकि मैं यहाँ सामान्य आर्यों की बात कर रहा हूँ।आर्यों की कथा ही क्यों? क्योंकि विश्व इतिहास का यह सबसे बड़ा झूठ रचा गया कि आर्य बाहरी और आक्रमणकारी थे। यह पश्चिम के विद्वानों की विद्वत्ता और निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न है। फिर यह भारत के वामपंथी इतिहासकारों की गुलाम मानसिकता है, जो उन्होंने इस आधारहीन काल्पनिक मत को आगे बढ़ाया। जबकि एक भी प्रमाण अपनी बात के समर्थन में ये दोनों आज तक प्रस्तुत नहीं कर पाए।अनेक बिंदुओं पर भ्रम की स्थिति वैदिक आर्यों के अति प्राचीन होने के कारण स्वाभाविक रूप से उभरी, तो अधिकांश झूठ षड्यंत्रपूर्वक एक गिरोह के द्वारा रचा गया। फिर भी हर युग में आर्य संस्कृति को गहराई से समझने की चाहत बनी रही। इसका कारण है, भारत में जमीन से जुड़ा एक बड़ा वर्ग है, जो आर्यों के लिए रचे गए झूठ को मानने को तैयार नहीं। उन्हें सत्य का ज्ञान है। पारंपरिक स्रोतों से उन्हें पता है कि इस देवभूमि की वैदिक सभ्यता अपने स्वर्णिम काल में एक विशिष्ट उच्च स्तर पर पहुँच चुकी थी। जबकि भारत के विदेशी शासकों ने पिछले 700-800 वर्षों में जानबूझकर आर्यों के कालखंड का गलत प्रस्तुतीकरण किया। उनकी हरसंभव कोशिश रहती थी कि ऐसा कुछ दिखाया जाए, जिससे यह प्रमाणित हो कि हिंदुस्तान में चिरकाल से पिछड़ापन और जड़ता थी। वे हर हाल में आर्यों को बाहरी और बर्बर घोषित करने का प्रयास करते रहे। मगर लगता है, वे अंत तक सफल नहीं हो पाए।वैसे आर्यों की कथा, अर्थात् भारत का प्राचीन इतिहास उपलब्ध है। हमारी इतिहासगाथा की अपनी शैली रही है। अब यह पश्चिम को स्वीकार्य न हो तो कोई उसमें क्या कर सकता है? हमारे इतिहास लेखन में सिर्फ राजाओं और राजवंश का इतिहास नहीं लिखा जाता, यह पश्चिमी इतिहासकारों का मनपसंद तरीका है। हमारे यहाँ जो भी वैदिक ग्रंथ रचे गए, उनमें संपूर्ण समाज का इतिहास है। वेदों के बाद ब्राह्मण व उपनिषद् लिखे गए। ब्राह्मण ग्रंथों में वेदों के मंत्रों और देवरूपों की गुत्थियाँ सुलझाने की कोशिश की गई। इसी कोशिश को आगे बढ़ाते हुए आरण्यक ग्रंथ रचे गए। वेदों के दर्शन पक्ष को विस्तार देनेवाले ग्रंथों को ‘उपनिषद्’ कहा गया। समय के साथ हर कालखंड में, जब-जब भी वेदों को समझ पाना मुश्किल हुआ, तब-तब इस समस्या के निवारण का प्रयास हुआ। इनकी व्याख्या के लिए नए ग्रंथों की रचना हुई। यह सिलसिला निरंतर चलता रहा और नए काल का इतिहास जुड़ता गया।We have made it easy for you to find a PDF Ebooks without any digging. And by having access to our ebooks online or by storing it on your computer, you have convenient answers with Main Aryaputra Hoon. To get started finding Main Aryaputra Hoon, you are right to find our website which has a comprehensive collection of manuals listed. Our library is the biggest of these that have literally hundreds of thousands of different products represented.
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